Monday, May 21, 2018

समझ का फेर

हर तरफ धुआं फैला है 
मैं उसे आसमान समझ बैठा 
जिंदगी को खत्म कर देती है मौत 
मैं उसे निर्वाण समझ बैठा 

पंछी उड़ते हैं आसमान में 
शिकारियों से छुपते फिरते 
अन्न की तलाश में 
मैं उसे आजादी समझ बैठा 

कहते हैं अनुशासन रहेगा 
अगर कोई ऊपर जाती का 
और कोई नीची जाती का होगा 
मैं उसे समाज समझ बैठा 

भूखे रहोगे तो पुण्य मिलेगा 
खाओगे तो मिलेगा पाप 
इन विचारों से मरता मारता मनुष्य 
मैं उसे धर्म समझ बैठा 

संभलता नहीं है लोक 
परलोक की आस लगाए बैठे हैं 
कौन बैठा ऊपर पता नहीं 
मैं उसे भगवान  समझ बैठा 


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