कभी आपने कठपुतलियों का नाच देखा है।
इंसान उँगलियों में धागा लपेटे
एक रंगीन दुनिया बनाता है
जहाँ अक्सर सब खुश रहते हैं
अगर दुःख हो तो भी अंत तक आते आते
फिर ध्यान हटता है
और नजर टिकती है
उस धागे के पीछे के इन्सान पर
उसकी उँगलियों में लकीरें हैं
उसकी किस्मत ऊकेरी हुई हैं उस पर
उन उंगलयों के पीछे हाथ है
जो पूरा रंगमंच सजाता है
उन हाथों को एक दिल चलाता है
जिसमे कुछ छोटे बच्चे हैं
एक घर संभालती स्त्री है
एक बूढ़े माँ बाप हैं
बस उनकी हंसी और ख़ुशी
इन हाथों को चलाती रहती हैं
कभी कभी लगता है
कविता यहीं ख़तम कर देनी चाहिए
कम से कम आशा जिन्दा रहती है
जीवन चलता रहता है
थोड़ा ऊपर नीचे सही
हंसी ठिठोली कायम रहती है
मगर
फिर एक दिन धागा टूट जाता है
कठपुतली धड़ाम से गिर जाती है
रँगमँच का हर कलाकार
औंधे मुँह गिर जाता है
रँगमँच अभी भी सुन्दर है
पर अब वो बेजान पड़ चुका है
काश !
कविता यहीं ख़तम हो जाये
कविता यहीं ख़तम हो जाये
हम बस नए धागे लगाएं
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