हिम्मत है तो तू बना सरकार
नहीं, तो है तुझ पर धिक्कार
कुबेर की पोटली खुली है
उठा धन और बन जा मक्कार
परवाह नहीं जनता क्या बोलेगी
बोलने से पहले वो भी तोलेगी
दाम मिलना चाहिए सही
मुर्गे की बांग सुनकर भी सो लेगी
दो धंधे इस दुनिया में पुराने
राजनीति भी एक वैश्या है
एक देह बेचता है घर चलाने को
एक देश बेच देता है
सत्ता की भूख मिटाने को
बड़े बड़े शब्द हैं जन सेवा
बस हम तो देखते हैं मेवा
आग लगा दो झोपड़ पट्टियों में
बड़ी ईमारत में जो बैठेगा वो देवता है
उठो दुर्योधन समय आ गया
अब सत्ता बस तुम्हारी है
अब नहीं है यहाँ कोई कन्हैया
अब बस शकुनि मामा की अय्यारी है
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