हर तरफ धुआं फैला है
मैं उसे आसमान समझ बैठा
जिंदगी को खत्म कर देती है मौत
मैं उसे निर्वाण समझ बैठा
पंछी उड़ते हैं आसमान में
शिकारियों से छुपते फिरते
अन्न की तलाश में
मैं उसे आजादी समझ बैठा
कहते हैं अनुशासन रहेगा
अगर कोई ऊपर जाती का
और कोई नीची जाती का होगा
मैं उसे समाज समझ बैठा
अगर कोई ऊपर जाती का
और कोई नीची जाती का होगा
मैं उसे समाज समझ बैठा
भूखे रहोगे तो पुण्य मिलेगा
खाओगे तो मिलेगा पाप
इन विचारों से मरता मारता मनुष्य
मैं उसे धर्म समझ बैठा
खाओगे तो मिलेगा पाप
इन विचारों से मरता मारता मनुष्य
मैं उसे धर्म समझ बैठा
संभलता नहीं है लोक
परलोक की आस लगाए बैठे हैं
कौन बैठा ऊपर पता नहीं
मैं उसे भगवान समझ बैठा
परलोक की आस लगाए बैठे हैं
कौन बैठा ऊपर पता नहीं
मैं उसे भगवान समझ बैठा
Lovely poem...Very deep meaning :)
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