संसद में बहस चलती है, शायद। संसद का जब निर्माण हुआ तो इसमें बैठने की अच्छी व्यवस्था की गई ताकि चुने हुए प्रतिनिधि देश के महत्वपूर्ण विषयों पर बहस कर सकें। मगर संसद के निर्माताओं को कहाँ पता था की यहाँ शब्दों के अलावा हर चीज उड़ाई जाएगी। आजकल जैसे कागज के प्लेन उड़ रहे हैं संसद में। नहीं, नहीं ये कोई सुरक्षा के लिए ड्रोन वगैरह नहीं है, ये तो कागज़ के प्लेन हैं जो हम और आप बचपन में उड़ाते थे। कई बार क्लास में उन प्लेनों को उड़ाने के चक्कर में मास्टरजी की डाँट भी खायी होगी। मगर हमारे नेताओं को कौन डाँटेगा।ऊपर से ऐसी हरकतों पर पब्लिक ताली बजाती हो तो क्या उम्मीद की जा सकती है।
खैर हवा में प्लेन उड़ रहे थे। चुने हुए प्रतिनिधि कागज़ के ऊपर R लिखकर उड़ा रहे थे। एक नया नियम है की जो संसद में मौजूद नहीं उसका नाम नहीं लिया जा सकता है । प्लेन अपनी अपनी श्रद्धा से जहाँ मन कर रह था उस दिशा में गोते लगा रहे थे। अचानक से उसमे से एक प्लेन का आकार बढ़ने लगा। सदन में अफरा तफरी फैल गयी। सांसदों को और अन्य कर्मचारियों को समझ में नहीं आया की यह क्या हो रहा है! कागज़ के प्लेन का आकार बढ़ता ही जा रहा था। लोगों को जहाँ जगह मिली वहां छुप गए। शीघ्र ही प्लेन पुरे संसद में समां गया। प्लेन का आगे का हिस्सा और उसके पंख संसद के स्तम्भों से होते हुए बाहर निकल आये। संसद के अगल बगल सड़क पर खड़े लोगों के लिए अद्भुत नजारा था।
अचानक से एक कागज का हेलीकाप्टर उड़ता हुआ आया और संसद की ईमारत के ऊपर मंडराने लगा। उसमें से जंजीरें निकलीं और उसने संसद भवन को बांध लिया। उस हेलीकॉपटर के ऊपर A का बड़ा अक्षर बना हुआ था। कुछ ही पलों में कागज़ का प्लेन और कागज़ का हेलीकाप्टर संसद भवन को ऊपर आसमान में ले गए और धरती से काफी ऊपर हवा में स्थिर कर दिया।
हलचल बंद हुई तो सांसदों में थोड़ी हिम्मत पैदा हुईऔर वो बाहर की ओर झाकने लगे। इस ऊंचाई से पुरे भारत का नजारा साफ दिखाई दे रह था, कन्याकुमारी से कश्मीर तक, अरुणांचल प्रदेश से गुजरात तक। इस साल बारिश नहीं हुई थी इसलिए जमीन में हरियाली गायब थी। ऊपर से सूरज की रौशनी में वो सोने के रंग में तमतमा रही थी। बिलकुल सोने की चिड़िया लग रही थी। बेरोजगार नौजवानों की फौज सडकों पर किसी तो मुद्दे पर दंगा मस्ती कर रही थी । मुद्दे जरूरी नहीं हैं, दंगा मस्ती जरूरी है। हम महान हैं क्योंकि हमें बताया गया है की हमारा इतिहास महान है। काश इतिहास हम सबको रोटी, कपड़ा और मकान भी दे देता।
जैसे ही पता चला की संसद हवा में लटक रहा है, पुरे देश की फौज और पुलिस बल हरकत में आ गई। फौज और पुलिस बल का सर्वप्रथम दायित्व वैसे भी नेताओं की रक्षा करना है। कुछ ही समय में वायुसेना के जहाजों ने संसद भवन को घेर लिया और अपने हुक में फंसा दिया। सेना के आगमन पर कागज़ के जहाज स्वयं ही अपने मूलआकार में चले गए। वैसे भी वो कागज़ के थे, कब तक टिकते। सेना ने सावधानी से संसद भवन को वापस उसकी जगह पहुंचा दिया। कागज़ के जहाज और हेलीकॉप्टर विशाल धरती पर कहीं गिरे और शीघ्र ही इतिहास में गुमनाम भी हो जायेंगे।
हमारे चुने हुए प्रतिनिधिओं पर इस घटना के बाद कुछ असर पड़ा ? यह भी क्या मुझे बताना पड़ेगा? आप स्वयं में काफी समझदार हैं और आपने भी देश की राजनीती को करीब से देखा है।
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