इस बार भी चुनावों में गहमा गहमी है। ठेंगा राम और भुल्लकड़ राम, दोनों ने अपनी पुरी ताकत झोंक दी है। हर दिन छोटी बड़ी सभाओं का आयोजन। बड़े बड़े वादे। नागरिकों ने दरख्वास्त की कि शहर के एक क्षेत्र में स्कूल नहीं है तो आनन फानन में दोनों नेताओं ने स्कूल का वादा कर डाला।
चुनाव खत्म हुए। इससे फर्क नहीं पड़ता कि कौन जीता। मगर कहानी को आगे बढ़ाने के लिए हम भुल्लकड़ राम को विजेता घोषित कर देते हैं। वैसे दुबारा याद दिला देता हूँ कि इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि कौन जीता।
दिन बीतते गए और अगला चुनाव सर पर आ खड़ा हुआ। किसी ने नेताजी को स्कूल के वादे की याद दिलाई। ठेंगा राम को भी भुलक्कड़ राम का किया वादा याद आ गया और उसने इसे चुनावी मुद्दा बना दिया। तब भुल्लकड़ राम को लगा कि कुछ करने का समय आ गया है।
भुलक्कड़ राम ने अपने सचिव को बुलाया और उसे स्कूल बनाने का आदेश दिया।
"मिश्राजी, स्कूल शहर के बींचो बीच बनाइये", मिश्राजी ने पान से भरे मुँह को ऊपर नीचे हिलाकर हामी भारी।
"मिश्रा जी इतना तम्बाकू वाला पान मत खाइए, कैंसर हो जाएगा," नेताजी थोड़ा रोषित दिखे। मिश्राजी को समझ में आ गया और वो दौड़कर बाहर गए , पीक थूकी और दौड़ते हुए वापस आ गए।
"जी हुजूर, स्कूल एकदम शहर के बीचों बीच बना देंगे। वैसे भी वहां पर बस्ती है। स्कूल जैसे नेक काम के लिए उन लोगों को हटाने में कोई बुराई नहीं", मिश्राजी अपना गणित बैठाने लगे।
"और उस स्कूल के चारों तरफ बहुत बड़ी दीवार होनी चाहिए", नेताजी ने अपनी बात जारी रखी।
"जी नेताजी", मिश्राजी अपने दिमाग में स्कूल का मॉडल बनाने लगे, "और एक बड़ा सा गेट", मिश्राजी को हमेशा इस बात का मलाल रहा है कि वो आर्थिक हालात अच्छे नहीं होने की वजह से ज्यादा पढ़ नहीं पाए। स्कूल की बातें उनके अंदर की इच्छाओं को जाग्रत कर देती हैं।
"नहीं मिश्राजी, उस स्कूल में कोई गेट नहीं होगा, केवल दीवर होगी। और दीवार इतनी ऊंची होनी चाहिए कि कोई अंदर नहीं घुस पाए", नेताजी ने अपनी बात जारी रखी।
मिश्राजी की आंखें चौड़ी हो गईं।
"और कोई गलती से भी घुस जाए तो उसे क्लासरूम टूटे फूटे मिलने चाहिये। जमीन उबड़ खाबड़ होनी चाहिए। ब्लैकबोर्ड लिखने लायक न हो। पाखानों में ऐसी बदबू होनी चाहिए कि कीड़े मकोड़े भी बेहोश हो जाएं।"
मिश्राजी की अचंभित भाव भंगिमाओं को देखकर नेताजी हंस पड़े।
"नेताजी मैं कुछ समझा नहीं ", मिश्राजी ने हिम्मत करके पूछ लिया।
"मिश्राजी, अगर लोग पढ़ लिख लेंगे तो हमें कौन पूछेगा", नेताजी के चेहरे में हल्की मुस्कान फैल गयी। " और वैसे भी वादा स्कूल का था, शिक्षा का नहीं।
"और हां उस सरकारी स्कूल के बगल में एक हमारे ट्रस्ट के नाम पर प्राइवेट स्कूल बनाइये। एकदम शानदार। आधी जमीन पर सरकारी स्कूल और आधी में प्राइवेट। "
"उसमे भी बिना गेट वाली दीवार", मिश्राजी अभी भी चीजों को समझने की कोशीश कर रहे थे।
नेताजी ने ठहाका लगाया और बोले, "नहीं मिश्राजी, यहाँ दीवार तो होगी मगर एक शानदार गेट भी होगा। बहुत सुन्दर गेट। उस गेट के अंदर लोग केवल पैसे देके जा पायेंगे। हर क्लासरूम के अंदर घुसने के पैसे होंगे। खेल के मैदान में जाने के पैसे होंगे। जितने पैसे उतनी बड़ी डिग्री। लोगों के दिमाग में ये बैठना चाहिए की अगर आपको अच्छी डिग्री चाहिए तो ज्यादा पैसा खर्च करना जरूरी होता है। बगल के सरकारी स्कूल की हालत भी इसी बात को और जोर से रखेगी ।"
तभी अंदर से नेताजी का पंद्रह साल का बेटा आया और उसने नेताजी से पूछा "पिताजी ये शिक्षा का अधिकार क्या होता है।"
नेताजी मुस्कुराये और बोले "बेटा, ये आपको मिश्राजी समझायेंगे।"
No comments:
Post a Comment