Just Musings
Wednesday, March 8, 2017
चलो फिर एक शहर बनाएँ
चलो
फिर
एक
शहर
बनाएँ
जहाँ
इंसान
रहते
हैं
धर्म
जाती
से
उपर
उठकर
बस
ज़मीन
और
आसमान
रहते
हैं
तू
भी
जिन्दा
मैं
भी
जिन्दा
तू
भी
मुर्दा
मैं
भी
मुर्दा
बस
जीवन
के
दो
शाश्वत
पहलू
बाकी
सब
परतों
को
उतार
गिराएँ
जब
उठे
आग
और
धुआँ
कहीं
दूर
तो
एक
शकून
हो
की
बस
भूखे
इंसान
की
भूख
मिटने
वाली
है
ना
की
किसी
के
अरमान
जल
रहे
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