मौत हर राह पर खड़ी है
दरवाज़े के पीछे
बिस्तर के नीचे
आज उसका तांडव है
रिश्ते मायने नहीं रखते
हाथ खिलौनों से खेलने वाले हैं
या जिंदगी का हल जोतने वाले
आपका धर्म आपकी जाती आपका ओहदा
फर्क नहीं पड़ता है उसे
मौत तो आज बस मौका ढूंढ रही
उसकी भूख आज अथाह है
इंसान महान प्राणी है
ढूंढता अपनी पहचान है
इतिहास धर्म आस्था के पन्नो में
जहां जरूरत पड़ती है
सुविधानुसार पन्ने चिपका देता है
सच या झूठ तो बस कल्पना है
मौत ठहाके लगाकर हंसती है
लंबे नखों से प्राण उठाती है
झोली में भर लेती है
खोएंगे हम बहुत इंसानों को
जब तक थमेगा मौत का तांडव
और फिर खोएंगे हम वापस
इंसानों के फैलाये मायाजाल में
गाजर मूली की तरह तैयार होंगे
चंद इंसानों की भूख के लिए
मौत कोने में मंद मंद मुस्करायेगी
अपने नखों को तराशती
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