Monday, August 20, 2018

जिंदगी एक फ़साना

हाड़ मांस का शरीर तो बना देते हैं
रूह डालना मुश्किल होता है
बदन पे चिपका देते हैं पैराहन
इंसान बनाना मुश्किल होता है

कसक एक ही रहती है जिंदगी में
वो अफसाना कैसा था
कुछ ठोकरें खाई कुछ गम पिए
हसीन पलों का भी अंदाजे बयां था

वही सूरज गर्मी में बेगाना लगता था
वही सूरज सर्दी में फ़साना लगता था
हड्डी को गला  दे तो सर्दी निष्ठुर
गर्मी को सुला दे तो  मधुर

रग में वो दौड़ता ही था
चाहे वो खून था या पानी
उम्मीद का एक जामा पहनकर
निकाल दी हमने जिन्दगानी

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