Friday, April 13, 2018

एक अश्क


एक अश्क गिरा आखँ के कोने से 
वो ऑंसू नहीं आइना था 
सरपट दौड़ी वह बूँद 
कहीं कोई अत्कार न कर दे 
वो जिस्म ठंडा पड़ चुका था 
आत्मा पहले ही मर चुकी थी 
अब जिस्म भी मर गया था 
बस हाड़ मांस बाकी था 

फिर सेना निकली 
बड़े बड़े बलवानों  की 
राष्ट्र जाती धर्म के 
पहने जिन्होंने मुखौटे थे 

अरमान थे उन आँखों में 
शैतान थे इन आँखों में 
फिर जिंदगी हार गयी 
हम अफ़सोस करते रहे 

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