मंजर मेले जैसा है | यह गॉड की जगह है | गॉड शब्द का इसलिए प्रयोग कर रहा हूँ क्योंकि यह बड़ा ही धर्मनिरपेक्ष शब्द है | आजकल डर भी लगता की किसी भी धर्म को अगर किस विशेष शब्द से आपत्ति हो गयी तो शब्द के चयनकर्ता के जीवन में संकट पैदा हो जाता है | खैर हम मेले की बात करते हैं | वैसे आप किसी भी धर्म की विशेष जगहों में जायेंगे, मंजर एक जैसा ही मिलेगा |
गॉड को किसी एक ईमारत में बीच में पत्थरों और लोहखंडों के बीच जकड़ के बिठा रखा होता है | गॉड के चारों तरफ सुरक्षा अंगरक्षक बैठे रहते हैं ताकि कोई मिलनेवाला जरूरत से ज्यादा गॉड के साथ समय व्यतीत ना कर ले | अंगरक्षकों की दया दृष्टि भी उन मिलनेवालों पर ज्यादा रहती है जिनके खीसे से बड़ी संख्या वाली मुद्रा निकलती है | मिलनेवालों की आँखों में श्रद्धा होती है | मिलानेवालों की आँखों में अंकगणित |
गॉड की ईमारत के आस पास भव्य मंजर रहता है | बाजार सजा होता है | कोई सामान बेच रहा होता है तो कोई सपने | व्यापार चरम में रहता है | दर्शन के लिए आया हुआ व्यक्ति अपने जिंदगी और मौत के बाद की जिंदगी को सँवारने की जद्दोजहद में रहता है | वह गॉड नहीं, एक सहारा ढूंढ रहा होता है जो उसकी ख्वाइशों को पूरा कर सके | बेचने वाला हर तरह से बेचने को तैयार रहता है | भय सबसे कारगर हथियार होता है | इंसान एक बार भय में आ जाये तो उसकी सोचने की शक्ति वैसे ही ख़त्म हो जाती है | कितना आसान होता है बोलना, "अगर आपने यह नहीं किया तो समझ लिजिये आपकी जिंदगी तो..."| इंसान खुद ही अपने बारे में बुरा से बुरा सोच लेता है | मार्केटिंग भी चरम में होती है | जो अपनी मौजूदा जिंदगी को ढंग से नहीं जी पा रहे हैं उन्हें भी मौत के बाद की जिंदगी को जीने के सपने दिखा दिए जाते हैं | सौ बार यह कर लो बस जन्नत का द्वार आपके लिए खुले समझिये | भय और लालसा के बीच झूलता इंसान शीघ्र ही भीड़ की शक्ल में गॉड को मिलने पहुँचता रहता है | जितनी भीड़ ज्यादा उतने बड़े गॉड | जितनी भीड़ ज्यादा उतने ज्यादा पहरे गॉड के लिए |
व्यापारी भी खुश, व्यापार करने वाला भी खुश | यही एक फलती फूलती इकोनॉमी के लक्षण होते हैं | गॉड खुश है की नहीं इसकी किसीको परवाह नहीं | गॉड को तो वैसे भी पत्थरों और लोहखंडों के बीच जकड़ के बिठा रखा है
व्यापारी भी खुश, व्यापार करने वाला भी खुश | यही एक फलती फूलती इकोनॉमी के लक्षण होते हैं | गॉड खुश है की नहीं इसकी किसीको परवाह नहीं | गॉड को तो वैसे भी पत्थरों और लोहखंडों के बीच जकड़ के बिठा रखा है
हर धर्म में लिखा है की गॉड हर जगह रहता है | पता नहीं फिर क्यों हम गॉड को विशेष जगह में ढूंढने की कोशिश करते हैं ? क्यों इस पुरे संरचना से व्यापार की बू आती है, आस्था की नहीं?| क्यों नहीं गॉड को हम अपने खुद के अस्तित्व में ढून्ढ नहीं पाते, जहाँ वह हमेशा हमारे साथ रहता है ?
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