अजीब है इस इंसान का मज़ाक
उसके अपने बच्चों के स्कूल में स्लेट नहीं
जिसको देखा नहीं, उस उपर वाले के घर संगमरमर के
संसार का पानी भी उसने बोतल में बंद कर दिया
बिकने को बस अब तेरी मेरी हवा बाकी है
अजीब है इस इंसान का मज़ाक
रास्तों का उसने दुनिया में जाल बिछा दिया
पर दिलों में उतरने की सुरंग नहीं ढूंड पाया
एक दिन मिट्टी में मिल जाएगा,
हाड़ क्या, रूह क्या, मगर जीता ऐसे है जैसे अमर वही
हाड़ क्या, रूह क्या, मगर जीता ऐसे है जैसे अमर वही
अजीब है इस इंसान का मज़ाक
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