Saturday, March 14, 2015

लाशों का शहर

इंसानों की हैवानियत देख कर
खुदा भी आजकल काफ़िर बन गया है
कब्र में सोया करती थी लाशें

मेरा शहर लाशों का बन गया है
हर खबर में मैं ढूँढता  हूँ अपने को
इस शहर में, मैं भी एक लाश बन गया हूँ
शराब में अब मद नहीं बचा है शायद
काफ़िर भी अब हिंदू मुसलमान बन गया है
बचपन में सुनी थी एक कहानी
कागज़ की कश्ती बारिश का पानी
उस बारिश में बहाता हूँ
कश्ती भरके उम्मीदों की रवानी

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